कहानी का नाम: "काली हवेली की खिड़की"
गाँव की रहस्यमयी हवेली
हिमाचल के एक छोटे से गाँव माधवपुर में एक पुरानी और वीरान हवेली थी, जिसे लोग "काली हवेली" कहते थे। कहा जाता था कि वहां से हर अमावस्या की रात को औरत की चीखें आती थीं। कोई उस हवेली के पास भी नहीं जाता था, खासकर रात में।
गाँव वालों का मानना था कि 30 साल पहले उस हवेली में एक परिवार रहता था—एक पति, पत्नी और उनकी छोटी बेटी। लेकिन एक रात, पूरा परिवार रहस्यमयी तरीके से गायब हो गया, और हवेली की एक खिड़की से खून टपकता देखा गया। तब से उस खिड़की को "मृत्यु खिड़की" कहा जाने लगा।
शहर से आए मेहमान
शहर से आए दो दोस्त—राजीव और सौरभ, गाँव में कुछ दिन छुट्टियां बिताने आए। उन्हें पुरानी और डरावनी जगहों में बहुत रुचि थी। जब उन्होंने "काली हवेली" की कहानी सुनी, तो उन्होंने तय किया कि वे रात में वहां जाकर खुद सच्चाई का पता लगाएंगे।
गाँव के बुज़ुर्गों ने उन्हें बहुत मना किया। एक बूढ़ी औरत ने कहा:
“बेटा, उस हवेली की खिड़की सिर्फ मृत आत्माएं देख सकती हैं। जो भी जिंदा इंसान उसे देखता है, वो कभी सामान्य नहीं रहता।”
लेकिन राजीव और सौरभ ने इन बातों को अंधविश्वास मानकर अनदेखा कर दिया।
अमावस्या की रात
अमावस्या की रात, दोनों दोस्त टॉर्च और कैमरे लेकर हवेली की ओर निकल पड़े। आधी रात को जब वे हवेली के अंदर पहुंचे, तो चारों ओर अजीब सी सन्नाटा और ठंडक थी, जैसे वहां कोई अदृश्य ताक़त मौजूद हो।
वे उस खिड़की की ओर बढ़े। खिड़की पर जाले जमे थे, लेकिन वह थोड़ी सी खुली हुई थी। राजीव ने जैसे ही झाँककर देखा, उसे अंदर एक छोटी बच्ची दिखी—सफेद फ्रॉक पहने, पीठ घुमाए खड़ी।
राजीव बोला, “देख सौरभ! अंदर कोई बच्ची है।”
सौरभ ने कुछ नहीं देखा। उसने कहा, “तू पागल हो गया है क्या? अंदर कुछ भी नहीं है।”
अचानक खिड़की अपने आप ज़ोर से बंद हो गई—धड़ाम!!
चीखों की शुरुआत
उसी वक्त हवेली की दीवारों से एक साथ कई औरतों की चीखें सुनाई देने लगीं। दरवाज़े खुद-ब-खुद बंद हो गए। टॉर्च की रोशनी झपकने लगी। सौरभ डर के मारे काँपने लगा और बोला,
“चल जल्दी भाग चलें यहाँ से।”
लेकिन राजीव जैसे किसी ट्रांस में चला गया था। वह खिड़की की ओर देखकर बुदबुदाने लगा—“माँ… तुम वही हो ना…”
सौरभ ने उसका हाथ पकड़ कर खींचा, लेकिन तभी राजीव ज़ोर से चिल्लाया और उसकी आंखों से खून बहने लगा।
आत्मा का रहस्य
सौरभ किसी तरह राजीव को लेकर हवेली से बाहर भागा। अगली सुबह गाँव के तांत्रिक ने उन्हें देखा और कहा:
“इस पर आत्मा का साया है… और ये आत्मा उसी बच्ची की है जो उस रात अपनी माँ के साथ मारी गई थी।”
तांत्रिक ने बताया कि उस बच्ची की आत्मा आज भी खिड़की से झांकती है और जो भी उसकी आंखों में आंखें डालता है, उसकी आत्मा खींच लेती है।
सौरभ रोने लगा, “क्या राजीव कभी ठीक होगा?”
तांत्रिक ने कहा, “एक ही तरीका है। उस खिड़की को हमेशा के लिए बंद कर देना और बच्ची की हड्डियों को शांति से जलाना।”
अंतिम मुठभेड़
सौरभ ने गाँव वालों की मदद से काली हवेली की दीवार तोड़ी और ज़मीन के नीचे बनी तहखाने में एक छोटी सी हड्डियों की गठरी पाई। जब उसने उसे हाथ में लिया, तो हवेली फिर से कांपने लगी। अचानक वही बच्ची सामने आ गई—इस बार उसकी आंखें लाल थीं और वह चीख रही थी।
“तुमने मुझे क्यों छोड़ा था माँ... मुझे क्यों मारा?”
सौरभ डरते हुए बोला, “तुम्हारी माँ नहीं, वो कोई और थी जिसने यह सब किया… अब तुम शांत हो जाओ…”
सौरभ ने हिम्मत कर के वह हड्डियाँ पास के नदी में बहा दीं और तांत्रिक के कहने पर खिड़की को लोहे की चादर से सील करवा दिया।
अंत… या नई शुरुआत?
कुछ ही दिनों में राजीव होश में आ गया। लेकिन उसकी आंखें अब भी रात में अजीब ढंग से चमकती थीं। वह अक्सर रात में चुपचाप एक ही बात दोहराता:
“वो अभी भी मुझे देख रही है… वो खिड़की अभी भी खुली है… मेरे लिए…”
गाँव वालों का मानना है कि आत्मा तो शांत हो गई, लेकिन खिड़की… वो अब भी किसी और की आत्मा ढूंढ रही है।
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