भूतिया हवेली की सच्चाई
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव "धनपुर" में एक पुरानी हवेली थी जिसे लोग "चौधराइन की हवेली" के नाम से जानते थे। गाँव वालों का मानना था कि वहाँ पर कोई आत्मा वास करती है, और रात के समय वहाँ जाने की सख्त मनाही थी।
कहानी की शुरुआत
रवि और उसके दो दोस्त – अजय और सोनू – गर्मी की छुट्टियों में गाँव आए थे। शहर के लड़कों को गाँव की ये भूतिया कहानियाँ मजाक लगती थीं। एक दिन अजय ने हँसते हुए कहा,
“अगर सच में वहाँ भूत है, तो चलो रात को जाकर देखते हैं।”
रवि को थोड़ा डर लगा, लेकिन दोस्तों की जिद के आगे झुकना पड़ा। तय हुआ कि वे रात 12 बजे हवेली में घुसेंगे और पूरी रात वहीं रहेंगे।
हवेली के अंदर
रात का समय था। पूरा गाँव नींद में डूबा था। तीनों लड़के टॉर्च और कैमरे लेकर हवेली की ओर निकले। हवेली तक पहुँचने के लिए एक सुनसान रास्ता था, जहाँ सिर्फ सूखे पेड़, झींगुरों की आवाज़ और ठंडी हवा का सन्नाटा था।
हवेली का दरवाज़ा अपने आप आधा खुला था। जैसे ही वे अंदर घुसे, अजीब सी ठंड महसूस हुई। दीवारों पर पुरानी तस्वीरें जमी थीं, जिन पर धूल और मकड़ी के जाले थे।
अचानक सोनू की टॉर्च बंद हो गई। तभी ऊपर की मंजिल से किसी औरत के चिल्लाने की आवाज़ आई – “मुझे छोड़ दो... मुझे मत मारो...”
डर का माहौल
रवि ने काँपती आवाज़ में कहा, “ये क्या था?”
अजय बोला, “कोई ड्रामा कर रहा होगा। चलो ऊपर चलते हैं।”
जैसे ही वे सीढ़ियाँ चढ़े, दीवार पर खून से लिखा था –
“जो यहाँ आएगा, वो ज़िंदा नहीं जाएगा।”
अचानक एक खिड़की अपने आप बंद हो गई, और ज़ोर की हवा चली। अंधेरे में एक औरत की परछाई दिखाई दी – सफेद साड़ी, खुले बाल, और खून से सना चेहरा।
चौधराइन की आत्मा
वो औरत तेज़ी से उनके पास आई और चीखते हुए बोली –
“तुम लोग क्यों आए? मेरी नींद क्यों तोड़ी?”
सोनू ज़मीन पर गिर गया और काँपने लगा। अजय बेहोश हो गया। रवि किसी तरह भागकर एक कोने में छिप गया।
औरत ने धीरे-धीरे सोनू की ओर बढ़ते हुए कहा –
“मैं चौधराइन हूँ। इस हवेली की रानी। मेरे पति ने मुझे ज़िंदा जला दिया था, क्योंकि मैं उसकी दूसरी बीवी बनने से मना कर रही थी। मेरी आत्मा यहीं भटकती है... अब तुम भी नहीं जा पाओगे!”
अचानक बदलाव
रवि ने जेब से माँ की दी हुई तुलसी की माला निकाली और उसे जोर से पकड़ लिया। जैसे ही माला उसके हाथ में आई, हवेली में तेज़ प्रकाश हुआ। औरत चीखने लगी और दीवार में समा गई।
उसकी चीख अब भी दीवारों में गूँज रही थी, लेकिन हवेली शांत हो चुकी थी।
रवि ने किसी तरह सोनू और अजय को बाहर निकाला। वे तीनों सुबह होते ही गाँव छोड़कर वापस शहर चले गए।
अंत में
रवि ने बाद में गाँव के एक बुज़ुर्ग से पूछा कि क्या ये सब सच था। बुज़ुर्ग ने गंभीरता से कहा,
“बेटा, उस हवेली में मत जाना। चौधराइन को आज भी चैन नहीं मिला। जो भी वहाँ जाता है, वो कुछ न कुछ खो देता है।”
रवि अब भी उस रात के सपने से जाग जाता है – सफेद साड़ी, लाल आँखें, और दीवार पर लिखा हुआ खून से सना वाक्य।
सीख
भूत-प्रेत की कहानियाँ सिर्फ किस्से नहीं होतीं। कुछ जगहें ऐसी होती हैं, जहाँ अतीत की पीड़ा आज भी ज़िंदा होती है। साहस दिखाना अच्छा है, लेकिन अंधविश्वास और सच्चाई में फर्क समझना और सम्मान देना ज़रूरी है।
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